Summary
Being not a master of himself, he is dragged only by that former practice (its mental impression); only a seeker of the knowledge of the Yoga passes over what strengthens the [sacred] text.
पदच्छेदः
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पूर्वाभ्यासेन | पूर्व–अभ्यास (३.१) |
तेनैव | तद् (३.१)–एव (अव्ययः) |
ह्रियते | ह्रियते (√हृ प्र.पु. एक.) |
ह्यवशो | हि (अव्ययः)–अवश (१.१) |
ऽपि | अपि (अव्ययः) |
सः | तद् (१.१) |
जिज्ञासुरपि | जिज्ञासु (१.१)–अपि (अव्ययः) |
योगस्य | योग (६.१) |
शब्दब्रह्मातिवर्तते | शब्दब्रह्मन् (२.१)–अतिवर्तते (√अति-वृत् लट् प्र.पु. एक.) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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पू | र्वा | भ्या | से | न | ते | नै | व |
ह्रि | य | ते | ह्य | व | शो | ऽपि | सः |
जि | ज्ञा | सु | र | पि | यो | ग | स्य |
श | ब्द | ब्र | ह्मा | ति | व | र्त | ते |