Summary
After that, the assiduously striving man of Yoga, having his sins completely cleansed and being perfected through many briths, reaches the Supreme Goal.
पदच्छेदः
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प्रयत्नाद्यतमानस्तु | प्रयत्न (५.१)–यतमान (√यत् + शानच्, १.१)–तु (अव्ययः) |
योगी | योगिन् (१.१) |
संशुद्धकिल्बिषः | संशुद्ध (√सम्-शुध् + क्त)–किल्बिष (१.१) |
अनेकजन्मसंसिद्धस्ततो | अनेक–जन्मन्–संसिद्ध (√सम्-सिध् + क्त, १.१)–ततस् (अव्ययः) |
याति | याति (√या लट् प्र.पु. एक.) |
परां | पर (२.१) |
गतिम् | गति (२.१) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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प्र | य | त्ना | द्य | त | मा | न | स्तु |
यो | गी | सं | शु | द्ध | कि | ल्बि | षः |
अ | ने | क | ज | न्म | सं | सि | द्ध |
स्त | तो | या | ति | प | रां | ग | तिम् |