Summary
He, who has faith and serves Me with his inner self gone to Me, he is considered by Me as the best master of Yoga, among all the men of Yoga.
पदच्छेदः
Click to Toggle
योगिनामपि | योगिन् (६.३)–अपि (अव्ययः) |
सर्वेषां | सर्व (६.३) |
मद्गतेनान्तरात्मना | मद्–गत (√गम् + क्त, ३.१)–अन्तरात्मन् (३.१) |
श्रद्धावान्भजते | श्रद्धावत् (१.१)–भजते (√भज् लट् प्र.पु. एक.) |
यो | यद् (१.१) |
मां | मद् (२.१) |
स | तद् (१.१) |
मे | मद् (६.१) |
युक्ततमो | युक्ततम (१.१) |
मतः | मत (√मन् + क्त, १.१) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
---|
यो | गि | ना | म | पि | स | र्वे | षां |
म | द्ग | ते | ना | न्त | रा | त्म | ना |
श्र | द्धा | वा | न्भ | ज | ते | यो | मां |
स | मे | यु | क्त | त | मो | म | तः |