Summary
The Bhagavat said O son of Prtha, hear [from Me] how, having your mind attached to Me, practising Yoga and taking refuge in Me, you shall understand Me fully, without any doubt.
पदच्छेदः
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मय्यासक्तमनाः | मद् (७.१)–आसक्त (√आ-सञ्ज् + क्त)–मनस् (१.१) |
पार्थ | पार्थ (८.१) |
योगं | योग (२.१) |
युञ्जन्मदाश्रयः | युञ्जत् (√युज् + शतृ, १.१)–मद्–आश्रय (१.१) |
असंशयं | असंशयम् (अव्ययः) |
समग्रं | समग्र (२.१) |
मां | मद् (२.१) |
यथा | यथा (अव्ययः) |
ज्ञास्यसि | ज्ञास्यसि (√ज्ञा लृट् म.पु. ) |
तच्छृणु | तद् (२.१)–शृणु (√श्रु लोट् म.पु. ) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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म | य्या | स | क्त | म | नाः | पा | र्थ |
यो | गं | यु | ञ्ज | न्म | दा | श्र | यः |
अ | सं | श | यं | स | म | ग्रं | मां |
य | था | ज्ञा | स्य | सि | त | च्छृ | णु |