Summary
Let a person lift the Self by self and let him not depress the Self. For, the self alone is the friend of the Self and self alone is the foe of the Self.
पदच्छेदः
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उद्धरेदात्मनात्मानं | उद्धरेत् (√उत्-हृ विधिलिङ् प्र.पु. एक.)–आत्मन् (३.१)–आत्मन् (२.१) |
नात्मानमवसादयेत् | न (अव्ययः)–आत्मन् (२.१)–अवसादयेत् (√अव-सादय् विधिलिङ् प्र.पु. एक.) |
आत्मैव | आत्मन् (१.१)–एव (अव्ययः) |
ह्यात्मनो | हि (अव्ययः)–आत्मन् (६.१) |
बन्धुर् | बन्धु (१.१) |
आत्मैव | आत्मन् (१.१)–एव (अव्ययः) |
रिपुरात्मनः | रिपु (१.१)–आत्मन् (६.१) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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उ | द्ध | रे | दा | त्म | ना | त्मा | नं |
ना | त्मा | न | म | व | सा | द | येत् |
आ | त्मै | व | ह्या | त्म | नो | ब | न्धु |
रा | त्मै | व | रि | पु | रा | त्म | नः |