Summary
Being duluded by these three beings of the Strands, this entire world does not recognise Me Who am eternal and transcending these [Strands].
पदच्छेदः
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त्रिभिर्गुणमयैर्भावैरेभिः | त्रि (३.३)–गुण–मय (३.३)–भाव (३.३)–इदम् (३.३) |
सर्वमिदं | सर्व (१.१)–इदम् (१.१) |
जगत् | जगन्त् (१.१) |
मोहितं | मोहित (√मोहय् + क्त, १.१) |
नाभिजानाति | न (अव्ययः)–अभिजानाति (√अभि-ज्ञा लट् प्र.पु. एक.) |
मामेभ्यः | मद् (२.१)–इदम् (५.३) |
परमव्ययम् | पर (२.१)–अव्यय (२.१) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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त्रि | भि | र्गु | ण | म | यै | र्भा | वै |
रे | भिः | स | र्व | मि | दं | ज | गत् |
मो | हि | तं | ना | भि | जा | ना | ति |
मा | मे | भ्यः | प | र | म | व्य | यम् |