Summary
All these are noble persons, indeed. But the man of wisdom is considered as the very Soul of [Mine]. For, with his self (mind) that has mastered the Yoga, he has resorted to nothing but Me as his most supreme goal.
पदच्छेदः
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उदाराः | उदार (१.३) |
सर्व | सर्व (१.३) |
एवैते | एव (अव्ययः)–एतद् (१.३) |
ज्ञानी | ज्ञानिन् (१.१) |
त्वात्मैव | तु (अव्ययः)–आत्मन् (१.१)–एव (अव्ययः) |
मे | मद् (६.१) |
मतम् | मत (√मन् + क्त, १.१) |
आस्थितः | आस्थित (√आ-स्था + क्त, १.१) |
स | तद् (१.१) |
हि | हि (अव्ययः) |
युक्तात्मा | युक्त (√युज् + क्त)–आत्मन् (१.१) |
मामेवानुत्तमां | मद् (२.१)–एव (अव्ययः)–अनुत्तम (२.१) |
गतिम् | गति (२.१) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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उ | दा | राः | स | र्व | ए | वै | ते |
ज्ञा | नी | त्वा | त्मै | व | मे | म | तम् |
आ | स्थि | तः | स | हि | यु | क्ता | त्मा |
मा | मे | वा | नु | त्त | मां | ग | तिम् |