Summary
O descendant of Bharata, O scorcher of foes ! At the time of creation, all beings get delusion because of the illusion of pairs [of opposites] arising from desire and hatred.
पदच्छेदः
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इच्छाद्वेषसमुत्थेन | इच्छा–द्वेष–समुत्थ (३.१) |
द्वंद्वमोहेन | द्वंद्व–मोह (३.१) |
भारत | भारत (८.१) |
सर्वभूतानि | सर्व–भूत (१.३) |
संमोहं | सम्मोह (२.१) |
सर्गे | सर्ग (७.१) |
यान्ति | यान्ति (√या लट् प्र.पु. बहु.) |
परंतप | परंतप (८.१) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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इ | च्छा | द्वे | ष | स | मु | त्थे | न |
द्वं | द्व | मो | हे | न | भा | र | त |
स | र्व | भू | ता | नि | सं | मो | हं |
स | र्गे | या | न्ति | प | रं | त | प |