Summary
But those men of virtuous deeds, whose sin has come to an end-they, being free from the delusion of pairs [of opposites], worship Me with firm resolve.
पदच्छेदः
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येषां | यद् (६.३) |
त्वन्तगतं | तु (अव्ययः)–अन्त–गत (√गम् + क्त, १.१) |
पापं | पाप (१.१) |
जनानां | जन (६.३) |
पुण्यकर्मणाम् | पुण्य–कर्मन् (६.३) |
ते | तद् (१.३) |
द्वंद्वमोहनिर्मुक्ता | द्वंद्व–मोह–निर्मुक्त (√निः-मुच् + क्त, १.३) |
भजन्ते | भजन्ते (√भज् लट् प्र.पु. बहु.) |
मां | मद् (२.१) |
दृढव्रताः | दृढ–व्रत (१.३) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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ये | षां | त्व | न्त | ग | तं | पा | पं |
ज | ना | नां | पु | ण्य | क | र्म | णाम् |
ते | द्वं | द्व | मो | ह | नि | र्मु | क्ता |
भ | ज | न्ते | मां | दृ | ढ | व्र | ताः |