Summary
Those, who, relying on Me, strive to achieve freedom from old age and death-they realise all to be the Brahman and realise all the actions governing the Self.
पदच्छेदः
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जरामरणमोक्षाय | जरा–मरण–मोक्ष (४.१) |
मामाश्रित्य | मद् (२.१)–आश्रित्य (√आ-श्रि + ल्यप्) |
यतन्ति | यतन्ति (√यत् लट् प्र.पु. बहु.) |
ये | यद् (१.३) |
ते | तद् (१.३) |
ब्रह्म | ब्रह्मन् (२.१) |
तद्विदुः | तद् (२.१)–विदुः (√विद् लिट् प्र.पु. बहु.) |
कृत्स्नमध्यात्मं | कृत्स्न (२.१)–अध्यात्म (२.१) |
कर्म | कर्मन् (२.१) |
चाखिलम् | च (अव्ययः)–अखिल (२.१) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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ज | रा | म | र | ण | मो | क्षा | य |
मा | मा | श्रि | त्य | य | त | न्ति | ये |
ते | ब्र | ह्म | त | द्वि | दुः | कृ | त्स्न |
म | ध्या | त्मं | क | र्म | चा | खि | लम् |