Summary
Those who realise Me as one [identical] with what governs the beings, deities and with what governs the sacrifices-they, even at the moment of their journey, experience Me, with their mastering the Yoga.
पदच्छेदः
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साधिभूताधिदैवं | स (अव्ययः)–अधिभूत–अधिदैव (२.१) |
मां | मद् (२.१) |
साधियज्ञं | स (अव्ययः)–अधियज्ञ (२.१) |
च | च (अव्ययः) |
ये | यद् (१.३) |
विदुः | विदुः (√विद् लिट् प्र.पु. बहु.) |
प्रयाणकाले | प्रयाण–काल (७.१) |
ऽपि | अपि (अव्ययः) |
च | च (अव्ययः) |
मां | मद् (२.१) |
ते | तद् (१.३) |
विदुर्युक्तचेतसः | विदुः (√विद् लिट् प्र.पु. बहु.)–युक्त (√युज् + क्त)–चेतस् (१.३) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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सा | धि | भू | ता | धि | दै | वं | मां |
सा | धि | य | ज्ञं | च | ये | वि | दुः |
प्र | या | ण | का | ले | ऽपि | च | मां |
ते | वि | दु | र्यु | क्त | चे | त | सः |