Summary
Among thousands of men, perchance, one makes effort for the determined knowledge. Among those, having the determined knowledge-even though they make effort-perchance one realises Me correctly.
पदच्छेदः
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मनुष्याणां | मनुष्य (६.३) |
सहस्रेषु | सहस्र (७.३) |
कश्चिद्यतति | कश्चित् (१.१)–यतति (√यत् लट् प्र.पु. एक.) |
सिद्धये | सिद्धि (४.१) |
यततामपि | यतत् (√यत् + शतृ, ६.३)–अपि (अव्ययः) |
सिद्धानां | सिद्ध (√सिध् + क्त, ६.३) |
कश्चिन्मां | कश्चित् (१.१)–मद् (२.१) |
वेत्ति | वेत्ति (√विद् लट् प्र.पु. एक.) |
तत्त्वतः | तत्त्व (५.१) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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म | नु | ष्या | णां | स | ह | स्रे | षु |
क | श्चि | द्य | त | ति | सि | द्ध | ये |
य | त | ता | म | पि | सि | द्धा | नां |
क | श्चि | न्मां | वे | त्ति | त | त्त्व | तः |