Summary
There exists nothing beyond Me, O Dhananjaya; all this is strung on Me just as the groups of pearls on a string.
पदच्छेदः
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मत्तः | मद् (५.१) |
परतरं | परतर (१.१) |
नान्यत्किंचिदस्ति | न (अव्ययः)–अन्य (१.१)–कश्चित् (१.१)–अस्ति (√अस् लट् प्र.पु. एक.) |
धनंजय | धनंजय (८.१) |
मयि | मद् (७.१) |
सर्वमिदं | सर्व (१.१)–इदम् (१.१) |
प्रोतं | प्रोत (√प्र-वे + क्त, १.१) |
सूत्रे | सूत्र (७.१) |
मणिगणा | मणि–गण (१.३) |
इव | इव (अव्ययः) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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म | त्तः | प | र | त | रं | ना | न्य |
त्किं | चि | द | स्ति | ध | नं | ज | य |
म | यि | स | र्व | मि | दं | प्रो | तं |
सू | त्रे | म | णि | ग | णा | इ | व |