Summary
That Unchanging One which the Veda-knowers speak of; Which the passion-free ascetics enter into; seeking Which they practise celibacy (or spiritual life); that Goal together with means [to reach It] I shall tell you.
पदच्छेदः
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यदक्षरं | यद् (२.१)–अक्षर (२.१) |
वेदविदो | वेद–विद् (१.३) |
वदन्ति | वदन्ति (√वद् लट् प्र.पु. बहु.) |
विशन्ति | विशन्ति (√विश् लट् प्र.पु. बहु.) |
यद्यतयो | यद् (२.१)–यति (१.३) |
वीतरागाः | वीत (√वि-इ + क्त)–राग (१.३) |
यदिच्छन्तो | यद् (२.१)–इच्छत् (√इष् + शतृ, १.३) |
ब्रह्मचर्यं | ब्रह्मचर्य (२.१) |
चरन्ति | चरन्ति (√चर् लट् प्र.पु. बहु.) |
तत्ते | तद् (२.१)–त्वद् (४.१) |
पदं | पद (२.१) |
संग्रहेण | संग्रह (३.१) |
प्रवक्ष्ये | प्रवक्ष्ये (√प्र-वच् लृट् उ.पु. ) |
छन्दः
उपजातिः [११]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ | ९ | १० | ११ |
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य | द | क्ष | रं | वे | द | वि | दो | व | द | न्ति |
वि | श | न्ति | य | द्य | त | यो | वी | त | रा | गाः |
य | दि | च्छ | न्तो | ब्र | ह्म | च | र्यं | च | र | न्ति |
त | त्ते | प | दं | सं | ग्र | हे | ण | प्र | व | क्ष्ये |