Summary
Properly controlling all the gates [in the body]; well restraining the mind in the heat; fixing one's own prana in the head; taking resort to the firmness of the Yoga;
पदच्छेदः
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सर्वद्वाराणि | सर्व–द्वार (२.३) |
संयम्य | संयम्य (√सम्-यम् + ल्यप्) |
मनो | मनस् (२.१) |
हृदि | हृद् (७.१) |
निरुध्य | निरुध्य (√नि-रुध् + ल्यप्) |
च | च (अव्ययः) |
मूर्ध्न्याधायात्मनः | मूर्धन् (७.१)–आधाय (√आ-धा + ल्यप्)–आत्मन् (६.१) |
प्राणमास्थितो | प्राण (२.१)–आस्थित (√आ-स्था + क्त, १.१) |
योगधारणाम् | योग–धारणा (२.१) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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स | र्व | द्वा | रा | णि | सं | य | म्य |
म | नो | हृ | दि | नि | रु | ध्य | च |
मू | र्ध्न्या | धा | या | त्म | नः | प्रा | ण |
मा | स्थि | तो | यो | ग | धा | र | णाम् |