Summary
And whosoever constantly bears Me in mind never attached to any other object-for this Yogin, ever devout, I am easy to attain, O son of Prtha !
पदच्छेदः
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अनन्यचेताः | अन् (अव्ययः)–अन्य–चेतस् (१.१) |
सततं | सततम् (अव्ययः) |
यो | यद् (१.१) |
मां | मद् (२.१) |
स्मरति | स्मरति (√स्मृ लट् प्र.पु. एक.) |
नित्यशः | नित्यशस् (अव्ययः) |
तस्याहं | तद् (६.१)–मद् (१.१) |
सुलभः | सुलभ (१.१) |
पार्थ | पार्थ (८.१) |
नित्ययुक्तस्य | नित्य–युक्त (√युज् + क्त, ६.१) |
योगिनः | योगिन् (६.१) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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अ | न | न्य | चे | ताः | स | त | तं |
यो | मां | स्म | र | ति | नि | त्य | शः |
त | स्या | हं | सु | ल | भः | पा | र्थ |
नि | त्य | यु | क्त | स्य | यो | गि | नः |