Summary
But there exists another Being which is beyond this, and It is both manifest and unmanifest and is etnernal. It is this Being that does not perish while all [the other] beings perish.
पदच्छेदः
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परस्तस्मात्तु | पर (१.१)–तद् (५.१)–तु (अव्ययः) |
भावो | भाव (१.१) |
ऽन्यो | अन्य (१.१) |
ऽव्यक्तो | अव्यक्त (१.१) |
ऽव्यक्तात्सनातनः | अव्यक्त (५.१)–सनातन (१.१) |
यः | यद् (१.१) |
स | तद् (१.१) |
सर्वेषु | सर्व (७.३) |
भूतेषु | भूत (७.३) |
नश्यत्सु | नश्यत् (√नश् + शतृ, ७.३) |
न | न (अव्ययः) |
विनश्यति | विनश्यति (√वि-नश् लट् प्र.पु. एक.) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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प | र | स्त | स्मा | त्तु | भा | वो | ऽन्यो |
ऽव्य | क्तो | ऽव्य | क्ता | त्स | ना | त | नः |
यः | स | स | र्वे | षु | भू | ते | षु |
न | श्य | त्सु | न | वि | न | श्य | ति |