Summary
The southern course [of the sun], consisting of six months, is smoke, night, and also dark. [Departing] in it, the Yogin attains the moon's light and he returns.
पदच्छेदः
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धूमो | धूम (१.१) |
रात्रिस्तथा | रात्रि (१.१)–तथा (अव्ययः) |
कृष्णः | कृष्ण (१.१) |
षण्मासा | षष्–मास (१.३) |
दक्षिणायनम् | दक्षिणायन (१.१) |
तत्र | तत्र (अव्ययः) |
चान्द्रमसं | चान्द्रमस (२.१) |
ज्योतिर्योगी | ज्योतिस् (२.१)–योगिन् (१.१) |
प्राप्य | प्राप्य (√प्र-आप् + ल्यप्) |
निवर्तते | निवर्तते (√नि-वृत् लट् प्र.पु. एक.) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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धू | मो | रा | त्रि | स्त | था | कृ | ष्णः |
ष | ण्मा | सा | द | क्षि | णा | य | नम् |
त | त्र | चा | न्द्र | म | सं | ज्यो | ति |
र्यो | गी | प्रा | प्य | नि | व | र्त | ते |