Summary
O son of Prtha, not a single Yogin, knowing these two courses, gets deluded. Therefore, O Arjuna, be practising Yoga connected with all times.
पदच्छेदः
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नैते | न (अव्ययः)–एतद् (२.२) |
सृती | सृति (२.२) |
पार्थ | पार्थ (८.१) |
जानन्योगी | जानत् (√ज्ञा + शतृ, १.१)–योगिन् (१.१) |
मुह्यति | मुह्यति (√मुह् लट् प्र.पु. एक.) |
कश्चन | कश्चन (१.१) |
तस्मात्सर्वेषु | तस्मात् (अव्ययः)–सर्व (७.३) |
कालेषु | काल (७.३) |
मामनुस्मर | मद् (२.१)–अनुस्मर (√अनु-स्मृ लोट् म.पु. ) |
युध्य | युध्य (√युध् लोट् म.पु. ) |
च | च (अव्ययः) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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नै | ते | सृ | ती | पा | र्थ | जा | न |
न्यो | गी | मु | ह्य | ति | क | श्च | न |
त | स्मा | त्स | र्वे | षु | का | ले | षु |
यो | ग | यु | क्तो | भ | वा | र्जु | न |