Summary
And also remembering whatever being, a person leaves his body at the end [of his life], that being alone he attains, O son of Kunti ! [Because] he has been constantly thinking about that being.
पदच्छेदः
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यं | यद् (२.१) |
यं | यद् (२.१) |
वापि | वा (अव्ययः)–अपि (अव्ययः) |
स्मरन्भावं | स्मरत् (√स्मृ + शतृ, १.१)–भाव (२.१) |
त्यजत्यन्ते | त्यजति (√त्यज् लट् प्र.पु. एक.)–अन्त (७.१) |
कलेवरम् | कलेवर (२.१) |
तं | तद् (२.१) |
तमेवैति | तद् (२.१)–एव (अव्ययः)–एति (√इ लट् प्र.पु. एक.) |
कौन्तेय | कौन्तेय (८.१) |
सदा | सदा (अव्ययः) |
तद्भावभावितः | तद्–भाव–भावित (√भावय् + क्त, १.१) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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यं | यं | वा | पि | स्म | र | न्भा | वं |
त्य | ज | त्य | न्ते | क | ले | व | रम् |
तं | त | मे | वै | ति | कौ | न्ते | य |
स | दा | त | द्भा | व | भा | वि | तः |