Summary
The Bhagavat said To you, who is entertaining no displeasure, I shall clearly declare also this most secret knowledge, together with action, by knowing which you shall be free from evil.
पदच्छेदः
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तत् | तद् (२.१) |
तु | तु (अव्ययः) |
ते | त्वद् (६.१) |
कारणं | कारण (२.१) |
राजन् | राजन् (८.१) |
प्रवक्ष्याम्यनसूयवे | प्रवक्ष्यामि (√प्र-वच् लृट् उ.पु. )–अनसूयु (४.१) |
तत्ते | तद् (२.१)–त्वद् (४.१) |
कर्म | कर्मन् (२.१) |
प्रवक्ष्यामि | प्रवक्ष्यामि (√प्र-वच् लृट् उ.पु. ) |
यज्ज्ञात्वा | यद् (२.१)–ज्ञात्वा (√ज्ञा + क्त्वा) |
मोक्ष्यसे | मोक्ष्यसे (√मुच् लृट् म.पु. ) |
ऽशुभात् | अशुभ (५.१) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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इ | दं | तु | ते | गु | ह्य | त | मं |
प्र | व | क्ष्या | म्य | न | सू | य | वे |
ज्ञा | नं | वि | ज्ञा | न | स | हि | तं |
य | ज्ज्ञा | त्वा | मो | क्ष्य | से | ऽशु | भात् |