Summary
Ever speaking of My glory, striving with firm resolve, paying homage to Me and being permanently endowed with devotion they worship Me.
पदच्छेदः
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सततं | सततम् (अव्ययः) |
कीर्तयन्तो | कीर्तयत् (√कीर्तय् + शतृ, १.३) |
मां | मद् (२.१) |
यतन्तश्च | यतत् (√यत् + शतृ, १.३)–च (अव्ययः) |
दृढव्रताः | दृढ–व्रत (१.३) |
नमस्यन्तश्च | नमस्यत् (√नमस्य् + शतृ, १.३)–च (अव्ययः) |
मां | मद् (२.१) |
भक्त्या | भक्ति (३.१) |
नित्ययुक्ता | नित्य–युक्त (√युज् + क्त, १.३) |
उपासते | उपासते (√उप-आस् लट् प्र.पु. बहु.) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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स | त | तं | की | र्त | य | न्तो | मां |
य | त | न्त | श्च | दृ | ढ | व्र | ताः |
न | म | स्य | न्त | श्च | मां | भ | क्त्या |
नि | त्य | यु | क्ता | उ | पा | स | ते |