Summary
[Of them] some worship Me by knowledge-sacrifice and others by offering sacrifices; [thus] they worship Me, the Universally-faced [either] as One [or] as Many.
पदच्छेदः
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ज्ञानयज्ञेन | ज्ञान–यज्ञ (३.१) |
चाप्यन्ये | च (अव्ययः)–अपि (अव्ययः)–अन्य (१.३) |
यजन्तो | यजत् (√यज् + शतृ, १.३) |
मामुपासते | मद् (२.१)–उपासते (√उप-आस् लट् प्र.पु. बहु.) |
एकत्वेन | एक–त्व (३.१) |
पृथक्त्वेन | पृथक् (अव्ययः)–त्व (३.१) |
बहुधा | बहुधा (अव्ययः) |
विश्वतोमुखम् | विश्वतोमुख (२.१) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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ज्ञा | न | य | ज्ञे | न | चा | प्य | न्ये |
य | ज | न्तो | मा | मु | पा | स | ते |
ए | क | त्वे | न | पृ | थ | क्त्वे | न |
ब | हु | धा | वि | श्व | तो | मु | खम् |