Summary
The masters of the three Vedas, the Somadrinkers, purified of their sins, aspire for the heavengoal by offering sacrifices to Me. They attain the meritorious world of the lord of gods and taste in the heaven the heavenly pleasures of the gods.
पदच्छेदः
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त्रैविद्या | त्रैविद्य (१.३) |
मां | मद् (२.१) |
सोमपाः | सोमप (१.३) |
पूतपापा | पूत (√पू + क्त)–पाप (१.३) |
यज्ञैरिष्ट्वा | यज्ञ (३.३)–इष्ट्वा (√यज् + क्त्वा) |
स्वर्गतिं | स्वर् (अव्ययः)–गति (२.१) |
प्रार्थयन्ते | प्रार्थयन्ते (√प्र-अर्थय् लट् प्र.पु. बहु.) |
ते | तद् (१.३) |
पुण्यमासाद्य | पुण्य (२.१)–आसाद्य (√आ-सादय् + ल्यप्) |
सुरेन्द्रलोकमश्नन्ति | सुर–इन्द्र–लोक (२.१)–अश्नन्ति (√अश् लट् प्र.पु. बहु.) |
दिव्यान्दिवि | दिव्य (२.३)–दिव् (७.१) |
देवभोगान् | देव–भोग (२.३) |
छन्दः
उपजातिः [११]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ | ९ | १० | ११ |
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त्रै | वि | द्या | मां | सो | म | पाः | पू | त | पा | पा |
य | ज्ञै | रि | ष्ट्वा | स्व | र्ग | तिं | प्रा | र्थ | य | न्ते |
ते | पु | ण्य | मा | सा | द्य | सु | रे | न्द्र | लो | क |
म | श्न | न्ति | दि | व्या | न्दि | वि | दे | व | भो | गान् |