Summary
Having enjoyed that vast world of heaven, they, when their merit is exhausted, enter the world of the mortals. Thus the persons, who long for pleasure and continuously take refuge in the code of conduct prescribed by the Three Vedas, attain the state of going and coming.
पदच्छेदः
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ते | तद् (१.३) |
तं | तद् (२.१) |
भुक्त्वा | भुक्त्वा (√भुज् + क्त्वा) |
स्वर्गलोकं | स्वर्ग–लोक (२.१) |
विशालं | विशाल (२.१) |
क्षीणे | क्षीण (√क्षि + क्त, ७.१) |
पुण्ये | पुण्य (७.१) |
मर्त्यलोकं | मर्त्य–लोक (२.१) |
विशन्ति | विशन्ति (√विश् लट् प्र.पु. बहु.) |
एवं | एवम् (अव्ययः) |
त्रयीधर्ममनुप्रपन्ना | त्रयी–धर्म (२.१)–अनुप्रपन्न (√अनुप्र-पद् + क्त, १.३) |
गतागतं | गत (√गम् + क्त)–आगत (√आ-गम् + क्त, २.१) |
कामकामा | काम–काम (१.३) |
लभन्ते | लभन्ते (√लभ् लट् प्र.पु. बहु.) |
छन्दः
उपजातिः [११]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ | ९ | १० | ११ |
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ते | तं | भु | क्त्वा | स्व | र्ग | लो | कं | वि | शा | लं |
क्षी | णे | पु | ण्ये | म | र्त्य | लो | कं | वि | श | न्ति |
ए | वं | त्र | यी | ध | र्म | म | नु | प्र | प | न्ना |
ग | ता | ग | तं | का | म | का | मा | ल | भ | न्ते |