Summary
Those men who, having nothing else [as their goal] worship Me everywhere and are thinking of Me [alone]; to them, who are constantly and fully attached [to Me], I bear acisition and the security of acisition.
पदच्छेदः
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अनन्याश्चिन्तयन्तो | अन् (अव्ययः)–अन्य (१.३)–चिन्तयत् (√चिन्तय् + शतृ, १.३) |
मां | मद् (२.१) |
ये | यद् (१.३) |
जनाः | जन (१.३) |
पर्युपासते | पर्युपासते (√पर्युप-आस् लट् प्र.पु. बहु.) |
तेषां | तद् (६.३) |
नित्याभियुक्तानां | नित्य–अभियुक्त (√अभि-युज् + क्त, ६.३) |
योगक्षेमं | योगक्षेम (२.१) |
वहाम्यहम् | वहामि (√वह् लट् उ.पु. )–मद् (१.१) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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अ | न | न्या | श्चि | न्त | य | न्तो | मां |
ये | ज | नाः | प | र्यु | पा | स | ते |
ते | षां | नि | त्या | भि | यु | क्ता | नां |
यो | ग | क्षे | मं | व | हा | म्य | हम् |