Summary
O son of Kunti ! Even those who are the devotees of other gods and worship [them] with faith, worship Me alone, [but] following non-injunction;
पदच्छेदः
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ये | यद् (१.३) |
ऽप्यन्यदेवता | अपि (अव्ययः)–अन्य–देवता (२.३) |
भक्ता | भक्त (१.३) |
यजन्ते | यजन्ते (√यज् लट् प्र.पु. बहु.) |
श्रद्धयान्विताः | श्रद्धा (३.१)–अन्वित (१.३) |
ते | तद् (१.३) |
ऽपि | अपि (अव्ययः) |
मामेव | मद् (२.१)–एव (अव्ययः) |
कौन्तेय | कौन्तेय (८.१) |
यजन्त्यविधिपूर्वकम् | यजन्ति (√यज् लट् प्र.पु. बहु.)–अविधि–पूर्वक (२.१) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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ये | ऽप्य | न्य | दे | व | ता | भ | क्ता |
य | ज | न्ते | श्र | द्ध | या | न्वि | ताः |
ते | ऽपि | मा | मे | व | कौ | न्ते | य |
य | ज | न्त्य | वि | धि | पू | र्व | कम् |