Summary
Because, I am the enjoyer as well as the lord of all sacrifices. But they do not recognise Me correctly and hence they move away [from Me].
पदच्छेदः
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अहं | मद् (१.१) |
हि | हि (अव्ययः) |
सर्वयज्ञानां | सर्व–यज्ञ (६.३) |
भोक्ता | भोक्तृ (१.१) |
च | च (अव्ययः) |
प्रभुरेव | प्रभु (१.१)–एव (अव्ययः) |
च | च (अव्ययः) |
न | न (अव्ययः) |
तु | तु (अव्ययः) |
मामभिजानन्ति | मद् (२.१)–अभिजानन्ति (√अभि-ज्ञा लट् प्र.पु. बहु.) |
तत्त्वेनातश्च्यवन्ति | तत्त्व (३.१)–अतस् (अव्ययः)–च्यवन्ति (√च्यु लट् प्र.पु. बहु.) |
ते | तद् (१.३) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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अ | हं | हि | स | र्व | य | ज्ञा | नां |
भो | क्ता | च | प्र | भु | रे | व | च |
न | तु | मा | म | भि | जा | न | न्ति |
त | त्त्वे | ना | त | श्च्य | व | न्ति | ते |