Summary
Even if an incorrigible evil-doer worships Me, not resorting to anything else [as his goal], he should be deemed to be righteous; for, he has undertaken his task properly.
पदच्छेदः
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अपि | अपि (अव्ययः) |
चेत्सुदुराचारो | चेद् (अव्ययः)–सु (अव्ययः)–दुराचार (१.१) |
भजते | भजते (√भज् लट् प्र.पु. एक.) |
मामनन्यभाक् | मद् (२.१)–अन् (अव्ययः)–अन्य–भाज् (१.१) |
साधुरेव | साधु (१.१)–एव (अव्ययः) |
स | तद् (१.१) |
मन्तव्यः | मन्तव्य (√मन् + कृत्, १.१) |
सम्यग्व्यवसितो | सम्यक् (अव्ययः)–व्यवसित (√व्यव-सा + क्त, १.१) |
हि | हि (अव्ययः) |
सः | तद् (१.१) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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अ | पि | चे | त्सु | दु | रा | चा | रो |
भ | ज | ते | मा | म | न | न्य | भाक् |
सा | धु | रे | व | स | म | न्त | व्यः |
स | म्य | ग्व्य | व | सि | तो | हि | सः |