Summary
Quickly he becomes righteous-souled (minded) and attains peace permanently. O son of Kunti ! I swear that my devotee gets never lost.
पदच्छेदः
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क्षिप्रं | क्षिप्रम् (अव्ययः) |
भवति | भवति (√भू लट् प्र.पु. एक.) |
धर्मात्मा | धर्म–आत्मन् (१.१) |
शश्वच्छान्तिं | शश्वत् (अव्ययः)–शान्ति (२.१) |
निगच्छति | निगच्छति (√नि-गम् लट् प्र.पु. एक.) |
कौन्तेय | कौन्तेय (८.१) |
प्रतिजानीहि | प्रतिजानीहि (√प्रति-ज्ञा लोट् म.पु. ) |
न | न (अव्ययः) |
मे | मद् (६.१) |
भक्तः | भक्त (१.१) |
प्रणश्यति | प्रणश्यति (√प्र-नश् लट् प्र.पु. एक.) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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क्षि | प्रं | भ | व | ति | ध | र्मा | त्मा |
श | श्व | च्छा | न्तिं | नि | ग | च्छ | ति |
कौ | न्ते | य | प्र | ति | जा | नी | हि |
न | मे | भ | क्तः | प्र | ण | श्य | ति |