Summary
O son of Prtha, even those who are of sinful birth, [besides] women, men of working class, and the members of the fourth caste-even they, having taken refuge in Me, attain the highest goal.
पदच्छेदः
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मां | मद् (२.१) |
हि | हि (अव्ययः) |
पार्थ | पार्थ (८.१) |
व्यपाश्रित्य | व्यपाश्रित्य (√व्यपा-श्रि + ल्यप्) |
ये | यद् (१.३) |
ऽपि | अपि (अव्ययः) |
स्युः | स्युः (√अस् विधिलिङ् प्र.पु. बहु.) |
पापयोनयः | पाप–योनि (१.३) |
स्त्रियो | स्त्री (१.३) |
वैश्यास्तथा | वैश्या (१.३)–तथा (अव्ययः) |
शूद्रास्ते | शूद्र (१.३)–तद् (१.३) |
ऽपि | अपि (अव्ययः) |
यान्ति | यान्ति (√या लट् प्र.पु. बहु.) |
परां | पर (२.१) |
गतिम् | गति (२.१) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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मां | हि | पा | र्थ | व्य | पा | श्रि | त्य |
ये | ऽपि | स्युः | पा | प | यो | न | यः |
स्त्रि | यो | वै | श्या | स्त | था | शू | द्रा |
स्ते | ऽपि | या | न्ति | प | रां | ग | तिम् |