Summary
O son of Kunti, all beings pass into the nature [of Mine] at the end of the Kalpa (the age of universe); I send them forth again at the beginning of the [next] Kalpa.
पदच्छेदः
Click to Toggle
सर्वभूतानि | सर्व–भूत (१.३) |
कौन्तेय | कौन्तेय (८.१) |
प्रकृतिं | प्रकृति (२.१) |
यान्ति | यान्ति (√या लट् प्र.पु. बहु.) |
मामिकाम् | मामक (२.१) |
कल्पक्षये | कल्प–क्षय (७.१) |
पुनस्तानि | पुनर् (अव्ययः)–तद् (२.३) |
कल्पादौ | कल्प–आदि (७.१) |
विसृजाम्यहम् | विसृजामि (√वि-सृज् लट् उ.पु. )–मद् (१.१) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
---|
स | र्व | भू | ता | नि | कौ | न्ते | य |
प्र | कृ | तिं | या | न्ति | मा | मि | काम् |
क | ल्प | क्ष | ये | पु | न | स्ता | नि |
क | ल्पा | दौ | वि | सृ | जा | म्य | हम् |