Summary
Taking hold of My own nature I send forth again and again this entire host of beings, which is powerless under the control of [My] nature.
पदच्छेदः
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प्रकृतिं | प्रकृति (२.१) |
स्वामवष्टभ्य | स्व (२.१)–अवष्टभ्य (√अव-स्तम्भ् + ल्यप्) |
विसृजामि | विसृजामि (√वि-सृज् लट् उ.पु. ) |
पुनः | पुनर् (अव्ययः) |
पुनः | पुनर् (अव्ययः) |
भूतग्राममिमं | भूत–ग्राम (२.१)–इदम् (२.१) |
कृत्स्नमवशं | कृत्स्न (२.१)–अवश (२.१) |
प्रकृतेर्वशात् | प्रकृति (६.१)–वश (५.१) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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प्र | कृ | तिं | स्वा | म | व | ष्ट | भ्य |
वि | सृ | जा | मि | पु | नः | पु | नः |
भू | त | ग्रा | म | मि | मं | कृ | त्स्न |
म | व | शं | प्र | कृ | ते | र्व | शात् |